रविवार, 28 दिसंबर 2008

जबान संभाल के

हिन्दी भाषा शिल्प और शैली के लिहाज से एक वैज्ञानिक भाषा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है देवनागरी लिपि, जिसमें ये भाषा बोली औऱ लिखी जाती है। देवनागरी लिपि की जो विशेषताएं हैं, वो दुनिया की शायद ही किसी भाषा में हो। देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर हम विशेष रूप से चर्चा करेंगे। लेकिन आज हम खास तौर पर बात करेंगे उच्चारण दोष की, जिस पर ध्यान देना किसी भी टेलीविजन पत्रकार के लिए बेहद जरूरी है। दरअसल हिन्दी भाषा में जो कुछ बोला जाता है, वही लिखा जाता है। इसी तरह से जो लिखा जाता है, वही बोला जाता है। इस भाषा की वैज्ञानिकता का ये सबसे बड़ा और मजबूत आधार है। लेकिन धीरे-धीरे ये विशेषता भी हम खत्म करते जा रहे हैं। चाहे अज्ञानतावश या फिर रूढ़ता की वजह से... लेकिन इससे न सिर्फ हम भाषा का नुकसान कर रहे हैं। बल्कि अपनी अज्ञानता का भी प्रदर्शन कर रहे हैं। मैं आज कुछ ऐसे उच्चारण दोष को रेखांकित करूंगा, जो टेलीविजन पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। जो कभी भी टेलीविजन देखते समय दर्शकों का स्वाद खट्टा कर सकता है। यहां तक कि कुछ लोग तो चैनल भी बदल देते हैं।उच्चारण दोष 1. महाप्राण को अल्प्राण में बदलकर बोलना – हर वर्ग ( कवर्ग, चवर्ग, तवर्ग, टवर्ग) के पहले और तीसरे वर्ण अल्पप्राण कहलाते हैं जबकि दूसरे और चौथे वर्ण महाप्राण कहलाते हैं। कई लोग महाप्राण को अल्पप्राण में बदलकर बोलते हैं। या तो क्षेत्रीयता के प्रभाव में या फिर भाषा के अलगाव की वजह से। खासकर दक्षिण भारत में महाप्राण जैसी कोई चीज ही नहीं होती। ऐसे लोग भ को ब बोलेंगे जबकि ख को क। जैसे -आरम्भ - आरंब, धोखा - दोखा, धोका भूख - बूक, भूक 2. हलन्त का उच्चारण – आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि बोलने के दौरान लोग कई शब्दों का उच्चारण हलंत के साथ करते हैं। जबकि जहां हलंत लगाना होता है, वहां नहीं लगाते हैं। जैसे – सम्राट्, कदाचित् में आखिरी वर्ण में हलंत लगता है। लेकिन लोग इसमें हलंत न लगाकर सम्राट् में ट् और कदाचित् में त् का उच्चारण पूरा ट और त करते हैं। इसी तरह कभी आप अपनी बोली पर ध्यान दीजिए – राम, श्याम या दूसरे शब्दों का उच्चारण कीजिए, खुद पाएंगे कि आपने राम्, श्याम् का उच्चारण किया है यानी आखिरी वर्ण म को म् बोलते हैं।3. चंद्रबिन्दु (ँ) और अनुस्वार (ं) के फर्क को न समझने वाले भी भयंकर भूल करते हैं। वैसे तो कंप्यूटर या टेलीविजन में काम करने वालों ने चंद्रबिन्दु (ँ) का इस्तेमाल करना बिल्कुल ही बंद कर दिया है। अब माँ को मां लिखते हैं, चाँद को चांद लिखते हैं। लेकिन क्या उच्चारण में भी इसे हटा देंगे। कभी सोचा है, आखिर क्या होगा इसका अंजाम। खुद अंदाजा लगाइये हंस को क्या बोलेंगे और इसका क्या अर्थ निकालेंगे – हंस का मतलब होता है हंस पक्षी जो कि मानसरोवर में मिलता है जबकि हँस का मतलब होता है हँसना। जाहिर है उच्चारण से छेड़छाड़ ठीक नहीं। इसी तरह सँकरा को संकरा बोलते हैं। ऐसे में अगर हम चंद्रबिन्दु का इस्तेमाल करना भी शुरू कर दें तो कितना बेहतर होगा। 4 – र के उच्चारण में भी दोष सुने और देखे जा सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि लोगों को यही नहीं पता चलता कि र कितने तरीके से लिखा जाता है। र का प्रयोग चार तरीके से होता है औऱ सबके उच्चारण भी अलग – अलग होते हैं। जैसे- पहला प्रयोग - राम, रहीम – यहां र वर्ण पूरा होता हैदूसरा प्रयोग - क्रम, प्रकार – इसमें र वर्ण पूरा है जबकि क और प आधातीसरा प्रयोग - कर्म, धर्म – इसमें र आधा है जबकि म पूराचौथा प्रयोग - कृपा, कृष्ण – इसमें क भी आधा होता है और र भीइसमें खास तौर पर चौथे वर्ण का जिक्र करना चाहूंगा। ये शब्द ऋ से लिया गया है। लेकिन इसका उच्चारण रि के जैसा नहीं होता। इसका सही उच्चारण आधा र ( र् ) के अर्थ में होता है। ऋतु शब्द तो आपने सुना ही होगा। खूबसूरत शब्द है, लेकिन टेलीविजन न्यूज चैनलों में इस पर अघोषित पाबंदी लगी हुई है। इसकी जगह हम मौसम या महीना बोल देते हैं। लेकिन यहां अर्थ समझाने के लिए आपको बता दूं कि इसका उच्चारण रि + तु = रितु ( RITU ) के जैसा नहीं होगा बल्कि र् + तु = (RTU) इसी तरह कृष्ण के उच्चारण में गलतियां कर जाते हैं। कृष्ण बोलने का सही तरीक़ा है क्+र्+ष्ण (Krshna), न कि क्रिष्ण (Krishna)इतना ही नहीं तीसरे और चौथे र के उच्चारण में फर्क बहुत महीन है। जिसको जानना बेहद जरूरी है। ये फर्क है क्र और कृ के कहने में – जरा एक बार फिर से गौर फरमाएं क्र=क्+र (Kra) और कृ=क्+र् (Kr)। 5. ऊर्दू का लफड़ा बहुत बड़ा है। इसमें कोई दोमत नहीं कि ऊर्दू के इस्तेमाल से भाषा का सौंदर्य बढ़ जाता है। खासकर बोलने के क्रम में भाषा आकर्षक हो जाती है। हिन्दी ने ऊर्दू से शब्दों का आयात तो किया ही है... लेकिन उच्चारण के लिए पांच चीजों को बहुत ही सम्मान से ग्रहण किया है। ये है क़, ख़, ग़, ज़, फ़। यानी नुक्ता के साथ यही पांच वर्ण। आप कई चैनलों में देख भी सकते हैं। ये अंतर आप समझ सकते हैं – क – कलम, क़ – क़रीब ख – खरगोश, ख़ – ख़तग – गुंडागर्दी, ग़ – ग़रीब ज – जादू, ज़ – ज़िंदगीफ – फल, फ़ – फ़रमाइशनुक्ता और बिना नुक्ता के उच्चारण में बड़ा फर्क है। बिना नुक्ता के शब्द सीधे मुंह से निकलते हैं। जबकि नुक्ता वाले शब्द सीधे पेट से। हिन्दी के साथ एक सहूलियत ये है कि अगर आपको इसकी जानकारी नहीं है, तो किसी में भी नुक्ता न लगाएं, कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन अगर आपकी जानकारी आधी अधूरी है और आपने गलत जगह पर नुक्ता लगा दिया तो वो बहुत बड़ी भूल कही जाएगी। इसलिए कई चैनल नुक्ता लगाते हैं, तो कुछ साफ तौर पर नहीं लगाते। 6. श,ष और स – ये तीनों वर्ण आपके बोलने का स्वाद किरकिरा कर सकते हैं। इसके उच्चारण की नासमझी घातक है। इसमें श और ष को लेकर उच्चारण में भेद करना काफी मुश्किल है। पर स का उच्चारण तो बिल्कुल अलग है। लेकिन कुछ बड़े पत्रकार तो इसकी भी धज्जियां उड़ा देते हैं। हर वर्ण का उच्चारण स ही करेंगे। 7. अंग्रेजी ने खूब कचडा किया है... कई लोग ऐसे मिलेंगे जो वैसे तो अंग्रेजी में पारंगत नहीं हैं.. लेकिन अंग्रेजी बोलने के चक्कर में खूब गड़बड़ी करते हैं - कभी लंडन बोलेंगे तो कभी लंदन, कनॉट प्लेस की एक बिल्डिंग में आग लगी तो लोगों ने दिल्ली को डेल्ही तक लिख दिया। भगवान बचाए ऐसे लोगों को। इतना ही नहीं अब ब्रिटिश और अमेरिकन एक्सेंट की भी दिक्कत आन पड़ी है। 8. स्थानीयता का प्रभाव - उच्चारण में कई बारगी स्थानीयता का भी गलत प्रभाव बढ़ता जा रहा है। बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब या फिर दक्षिण भारत के लोगों के लिए कुछ हद तक जायज है। लेकिन हरियाणा, मारवाड़ी, बिहार के लोगों के लिए क्या कहेंगे। खास तौर पर हरियाणा प्रभाव वाले लोगों के उच्चारण में न को ण बोलने की प्रवृति कुछ ज्यादा ही होती है। जैसे – जाने दे को जाणे दे... इसी तरह से खींचना को कहेंगे खेंचना9. अर्ध चंद्र को लेकर भी कई बार मुश्किलें आती हैं। ये तो सबको पता है कि हमने उच्चारण की दृष्टि से अर्ध चंद्र को अंग्रेजी से आयात कर लिया है। लेकिन अब भी कई लोग डॉक्टर को डाक्टर, कॉलेज को कालेज बोलने में ही शान समझते हैं। 10 शुरुआती शब्दों को एकार लगाकर बोलना – पता नहीं लोगों ने ये कला कहां से विकसित कर ली। लेकिन अब किसी भी शब्द को बेहतर करने के लिए लोग शुरुवाती वर्णों में एकार लगा देते हैं। शुरू शुरू में ये आदत रेडियो से शुरू हुई लेकिन अब तो टेलीविजन न्यूज चैनलों में भी लोग धड़ल्ले से इस्तेमाल करने लगे हैं। जैसे पहले को पेहले, जनाब को जेनाब कहेंगे। 11. मात्राओं की गलतियां – बोलने के क्रम में ये गलती सबसे ज्यादा होती है। ऐसा नहीं कि लोग इसके भेद को नहीं जानते, बस रुकने में गलती करते हैं और फिर भाषा की ऐसी की तैसी कर देते हैं। जैसे के जेसे कहेंगे। इसी तरह से कि - की, ओर - और, क्युंकि – क्योंकि में इन गलतियों को आप पकड़ सकते हैं। 12. ड ड़, ढ, ढ़ की नासमझी भी बहुत बड़ी है। कई लोगों को तो इन वर्णों का फर्क भी नहीं मालूम। इसके उदाहरण देख लीजिए। ड – डमरू, डाल, डंडा, डगर, डर, डरपोकड़ – लड़का, घोड़ा, कड़ा, बड़ा, खड़ाढ – ढूंढना, ढंग, गड्ढा, ढलना, ढोकला, ढोलकढ़ – चढ़ा, बढ़ा, टेढ़ा13. पूर्ण विराम और अल्प विराम का फर्क जानना जरूरी है। कुछ पत्रकार ऐसे होते हैं कि पता ही नहीं चलता कब औऱ कहां बोलते बोलते रुक जाएंगे। हमेशा ध्यान ऱखें कि आपको बोलते-बोलते वहीं रुकना हैं, जहां वाक्य की समाप्ति होती हो या फिर एक अर्थ संदर्भ पूरा होता हो। जैसे - हिन्दुस्तान अखबार की कुछ लाइनें उठा रहा हूं। -राजधानी में हुए सीरियल ब्लास्ट मामले के मुख्य आरोपी समेत इंडियन मुजाहिद्दीन के दो आतंकियों को पुलिस ने शुक्रवार को जामिया नगर इलाके में हुई मुठभेड़ में मार गिराया। एक आतंकी को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जबकि उनके दो साथी पुलिस टीम पर गोली चलाते हुए फरार होने में सफल रहे। वैसे तो अखबार की इस भाषा को टेलीविजन में लागू नहीं किया जा सकता। टेलीविजन के लिए ये एक बहुत ही खराब स्क्रिप्ट कही जाएगी। लेकिन उदाहरण के लिए यहां ले रहा हूं – पहले वाक्य में अगर आप कारक से पहले के किसी भी शब्द में रूक गए तो आपने भारी भूल कर दी। पहले वाक्य में आप (हुए), या (को) या (ने) कारक चिह्न के साथ अल्प विराम की स्थिति में आ सकते हैं। लेकिन यहां भी अगर आप पूर्ण विराम वाली स्थिति में रूक गए तो ये ठीक नहीं होगा। इसी तरह से दूसरे वाक्य में जहां कोमा (,) लगा है वहां तो आपको रुकना ही होगा। अगर आप एक्सप्रेस गाड़ी की तरह चले जा रहे हैं तो समझ लीजिए कि आप गलती कर रहे हैं। 14. संयुक्ताक्षरों का ग़लत उच्चारण – क्ष, द्य और ज्ञ आदि संयुक्ताक्षरों को लोग आम तौर पर ग़लत तरीक़े से बोलते हैं। ख़ासकर क्ष को। जैसे कक्षा को कछा या कच्छा बोलेंगे, क्षेत्र को छेत्र। इसी तरह से ‘ज्ञ’ को हमेशा गलत तरीके से बोला जाता है। इसे समझने का सबसे आसान तरीक़ा है, संधि विच्छेद करके इनकी ध्वनि की पहचान की जाए। जैसे क्ष = क् + ष, द्य = द् + य और ज्ञ = ज् + ञ। 15. हर वर्ग के आखिरी वर्ण का उच्चारण – हिन्दी की एक बहुत बडी परेशानी अनुस्वार में आकर टिक गई है। लोगों को लगता है कि जहां अनुस्वार है, वो आधा न वर्ण है। जैसे – शंकर, संचय, दंड, अंत या फिर चंबल में ज्यादातर लोग समझते हैं कि अनुस्वार आधा न की जगह आया है। लेकिन ऐसा है नहीं। सारे अनुस्वार अलग-अलग वर्ण के लिए आए हैं। जैसे - शंकर में अनुस्वार ङ की जगह आया है – संधि विच्छेद होगा श+ङ्+क+र= शंकरसंचय में अनुस्वार ञ की जगह आया है – संधि विच्छेद होगा स+ञ्+च+य= संजयदंड में अनुस्वार ण की जगह आया है – संधि विच्छेद होगा द+ण्+ड = दंड अंत में अनुस्वार न की जगह आया है – संधि विच्छेद होगा अ+न्+त = अंत चंबल में अनुस्वार म की जगह आया है – संधि विच्छेद होगा च+म्+ब+ल= चंबलदेवनागरी वर्णमाला को अगर आप ध्यान से देखें तो हर वर्ग के अन्त में नासिक ध्वनि के लिए वर्ण दिया गया है। जिसे प्रयोग में लाया जाता है। जाहिर है इसके उच्चारण भी अलग होते हैं। जैसे,[क ख ग घ ङ] अङ्गद, पङ्कज, शङ्कर या अंगद, पंकज, शंकर[च छ ज झ ञ] अञ्चल, सञ्जय, सञ्चय या अंचल, संजय, संचय[ट ठ ड ढ ण] कण्टक, दण्ड, कण्ठ या कंटक, दंड, कंठ[त थ द ध न] अन्त, मन्थन, चन्दन या अंत, मंथन, चंदन[प फ ब भ म] कम्पन, सम्भव, चम्बल या कंपन, संभव, चंबल16. तोतला होना – ये दोष प्राकृतिक है। लेकिन अभ्यास से दूर कर सकते हैं। ऐसे शख्स न चाहते हुए भी हर शब्द में त वर्ण घुसेड़ देंगे – जैसे - मैं तो बात तयना ताहता ता... लेतिन तापसे बात ही नहीं तुई... ( मैं तो बात करना चाहता था, लेकिन आपसे बात ही नहीं हुई) इसके लिए किसी शख्स को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि ऐसा किसी के साथ भी बचपन से ही हो सकता है। उच्चारण को लेकर और भी कई धारणाएं हो सकती हैं। लेकिन अगर आप उपरोक्त गलतियों को सुधार लें तो आप हिन्दी के अच्छे वक्ता हो सकते हैं। खासकर वर्तनी औऱ शब्दों के उच्चारण के लिहाज से तो जरूर।