गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

आखिरी चेहरा - - हरीश चंद्र बर्णवाल


मिस्टर कुमार टेलीविजन के बड़े पत्रकार हैं। इनका मार्केट इन दिनों अप है... टेलीविजन की भाषा में बोलूं तो इनकी टीआरपी काफी ऊपर चल रही है। लेकिन मिस्टर कुमार को इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इन्हें अपना चेहरा कई बार बदलना पड़ता है। लेकिन इससे इन्हें कोई गुरेज नहीं। कहानी सुननी हो तो इनके चेहरे देखने जरूरी हैं

पहला चेहरा - बास के सामने घिघियाहट वाला चेहरा... ऐसा चेहरा जिससे लगे कि टेलीविजन में सबसे ज्यादा दलित, शोषित और काम के बोझ से लदे पत्रकार वही हों... सारा काम इन्हें ही करना पड़ता हो ... अगर ये न रहें तो चैनल का एक भी दिन काम चल ना पाए... मिस्टर कुमार कोशिश करते हैं कि ये चेहरा न्यूजरूम में कोई न देख ले, केवल बास ही देखें

दूसरा चेहरा – ऐसा चेहरा, जिसे देखते ही न्यूज रूम के सारे पत्रकार थर्राने लगें। मिस्टर कुमार का अंदाज इसमें काबिले-तारीफ है। पत्रकारों में खौफ भरने के लिए वो न्यूजरूम के लीडर पर ही निशाना साधते... अगर लीडर ही ढेर हो जाए... तो बाकी टूटपुंजिये पत्रकार वैसे ही उनके पैरों पर लुढ़कने को तैयार रहते... जूनियर पत्रकारों पर निशाना साधने के लिए उन्हें विशेष मेहनत करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। कभी शब्द पर ही टोककर फटकार लगा देते... मसलन फैसला लिख दिया तो कहते निर्णय क्यों नहीं लिखा। निर्णय लिखा होता तो कहते फैसला क्यों नहीं लिखा। कभी खबर पर टोक देते कि इस खबर को पहले क्यों लिया... बाद में क्यों नहीं... या फिर अगर कुछ नहीं मिलता तो ये जरूर कहते कि... आप सिर्फ दिहाड़ी कर रहे हैं... कुछ नया नहीं कर रहे... बस वही पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। मिस्टर कुमार को ये चेहरा विशेष पसंद है। जहां भी मौका मिलता है, वो इसे आजमाने से नहीं चूकते

तीसरा चेहरा – ये चेहरा भी प्रिय है... ये महिला पत्रकारों के सामने दिखने वाला चेहरा है। इसमें हर वक्त वो कमर मटकाते हुए या छेड़छाड़ करते हुए दिख जाते। जूनियर लड़कियां उन्हें स्मार्ट, क्यूट और भी न जाने रीति काल के अलग-अलग उपमाओं से पुकारतीं। ये चेहरा आप कभी भी देख सकते हैं... न्यूज रूम में, बाहर चाय के ढाबे में... बास न हो तो केबिन में...

चौथा चेहरा – कभी टीवी में सूरत दिखाने की नौबत आ जाए, तो मिस्टर कुमार बड़े ही धीर गंभीर लगते... ऐसा लगता मानो सारे जहां की मुसीबत इन्होंने अपने गले में बांध ली हो... टुच्ची घटनाओं में भी देशभक्ति पैदा करना हो... तो कोई इनसे सीखे...

पांचवां चेहरा – वैसे तो मिस्टर कुमार काम करते हुए कम दिखेंगे, लेकिन अगर बास आसपास फटक रहे हों तो कुमार किसी न किसी पत्रकार को समझाते हुए जरूर दिख जाएंगे... ऐसा चेहरा मानो कोई बाप अपने मासूम बच्चे को कुछ समझा रहा हो... भई बास इस चेहरे को देखकर मिस्टर कुमार से बहुत इम्प्रेश हैं....

मिस्टर कुमार इन सभी चेहरों को कभी भी पल भर में बदल सकते हैं। इन सभी चेहरों का लबादा ओढ़ना उन्हें बेहद पसंद है। लेकिन कुमार इन दिनों बहुत परेशान हैं... क्योंकि उन्होंने अपना एक आखिरी चेहरा भी देखा है... देखा क्या है ... बल्कि कहिए किसी ने दिखाया है... इसके बाद अब उन्हें अपने हर चेहरे से नफरत होने लगी है... जानना चाहेंगे क्यों...

एक लंबी कहानी है... जो मिस्टर कुमार के साथ बीत रही है... लेकिन हम चंद शब्दों में आपको बताएंगे... दरअसल कुमार अपना चेहरा कितना बदलें... आखिर वो भी तो इंसान हैं... उस पर भी घर में चेहरा बदलते रहना आसान भी नहीं... भले ही उन्हें गुर्राने वाला दूसरा चेहरा पसंद हो...

एक बार घर में उनका मन नहीं लग रहा था... ऐसे में कुमार ने अपनी मासूम बिटिया को बुलाया कि उससे जरा खेले... बतियाएं... मन बहलाएं...लेकिन बिटिया आने को तैयार ही नहीं... मिस्टर कुमार के बार बार चीखने पर न्यूजरूम के किसी पत्रकार की तरह उनकी बीवी मासूम बिटिया को खींचतान करके बाप के पास आई... लेकिन बिटिया खेल ही नहीं रहीं... कुमार को गुस्सा आया... पूछ बैठे – “ क्या बात है बिटिया, मुझसे नहीं खेलना चाहती ”

बेटी ने बड़ी ही मासूमता से डरते डरते जवाब दिया “ पापा कैसे खेलें... आपके चेहरे को देखते ही डर लगता है ”

मिस्टर कुमार अवाक्... उन्हें पता ही नहीं चला कि वो दफ्तर को घर भी लेकर जाने लगे... इसलिए उन्होंने ये चेहरा अब तक नहीं देखा था... क्या आपने देखा है ?