सोमवार, 3 मई 2010

तेंदुलकर ने हरा दिया

भारतीय क्रिकेट के भगवान को भारतीय क्रिकेट के जादूगर ने परास्त कर दिया। लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि आईपीएल 3 का फाइनल मैच तेंदुलकर ने मुंबई इंडियंस का हरा दिया। उनकी वजह से ही टीम को हार का मुंह देखना पड़ा। ये सब पढ़कर आप जरूर चौंक रहे होंगे... लेकिन इसकी कई वजहें हैं... फील्डिंग, बैटिंग, कप्तानी कुछ भी लें ले... आपको साफ पता चल जाएगा कि कैसे सचिन न सिर्फ एक बेबस कप्तान हैं... बल्कि एक लीडर के तौर पर उनके पास कोई विजन ही नहीं है।
पहले बात करते हैं उनकी कप्तानी की। एक कप्तान के तौर पर सचिन ने इतनी गलतियां की कि मुंबई इंडियंस को हारने से कोई नहीं रोक सकता था। मसलन उन्होंने अपनी बेंच स्ट्रेंथ का बहुत ही गंदे तरीके से इस्तेमाल किया। किसी को भी सचिन के इस फैसले से हैरानी हुई कि आखिर उन्होंने केरॉन पोलार्ड को इतनी देरी से क्यों बुलाया। हालांकि बाद में खुद सचिन ने भी इस गलती को स्वीकार किया। जरा खुद सोचिए इतने बल्लेबाज होने के बाद भी हरभजन दूसरे नंबर पर और पोलार्ड छठे नंबर पर बुलाए गए...
इसके अलावा पूरे मैच के दौरान सचिन का रवैया एक ऐसे कप्तान का नहीं था, जो अपने खिलाड़ियों को उत्साहित करते रहें। बल्कि बार बार सचिन खुद मैदान में झुंझला रहे थे। सचिन की झुंझलाहट को लोगों ने दो बार साफ तौर पर महसूस किया। पहली बार तब जब रैना का आसान कैच दो फील्डरों ने कंफ्यूजन में छोड़ दिया और दूसरा तब जब अभिषेक नायर रन आउट हो गए... उस समय तेंदुलकर ने गुस्से में अपना बैट तक पटक दिया। इसके अलावा सचिन Decision making में भी काफी कमजोर हैं, जो कि साफ दिख रहा था।
सचिन की बैटिंग का भी आकलन करें तो उनमें जीत के जज्बे की कमी साफ झलक रही थी। बल्कि हर वक्त वो दबाव में खेलते दिख रहे थे। सचिन एक महानतम बल्लेबाज हैं... इसमें किसी को कोई भी शक नहीं है। लेकिन उन्होंने टीम के लिए जिस तरह की धीमी शुरुआत दी... उससे पूरी टीम ही दबाव में आ गई। ऐसा लगा मानो वो सिर्फ पिच पर टिकने के लिए ही खेल रहे हों।
कल किसी ने ये कहा कि टॉस हारने की वजह से सचिन ये मैच हार गए... तो इसमें दो बातें कहना चाहूंगा... पहला ये कि इस लीग में मुंबई इंडियंस जैसा मजबूत टीम कॉम्बिनेशन किसी का नहीं है... इतना ही नहीं अगर सचिन की जगह धोनी मुंबई इंडियंस के कप्तान होते और सचिन चेन्नई सुपर किंग्स के... साथ ही टॉस जीतकर चेन्नई ही पहले बल्लेबाजी करती... तब भी सचिन की टीम हार जाती... और धोनी ही जीतते
कहने का मतलब सिर्फ ये है कि सचिन भले ही भारतीय क्रिकेट के भगवान हों... एक बल्लेबाज के तौर पर दुनिया का कोई भी खिलाड़ी भले ही उनके आसपास भी न हो... लेकिन एक कप्तान के तौर पर सचिन तेंदुलकर फेल हैं। इसलिए उन्हें सहवाग की तरह कप्तानी जरूर छोड़ देनी चाहिए। सचिन एक नायाब हीरा हैं... लेकिन उन्हें भी एक जौहरी की जरूरत है। आखिरी बात ये कि सचिन का भले ही वर्ल्ड कप जीतना एक सपना हो। वो इसे सिर्फ अपनी बल्लेबाजी के जरिये हासिल तो कर सकते हैं... लेकिन ये तभी संभव है... जब उनके साथ धोनी जैसा एक जौहरी भी साथ हो।

हरीश चंद्र बर्णवाल
एसोसिएटर एक्जक्यूटिव प्रोड्यूसर
IBN7