क्या करें और क्या न करें
पिछले कई लेख से हम आपको यह बता रहे हैं कि टेलीविजन न्यूज़ चैनलों में भाषा की कितनी अहमियत है। लेकिन इस बार हम भाषा की इकाई यानि शब्द के बारे में चर्चा करेंगे। दरअसल ये छोटी सी इकाई ही भाषा को सुंदर,सुडौल, और सुसज्जित बनाती है। वाक्य विन्यास का सुव्यवस्थित क्रम शब्दों की कसौटी पर ही परखा जाता है। शब्द जितने संयमित होंगे, आपकी भाषा उतनी ही मर्यादित होगी और आम लोगो के बेहद करीब भी। लेकिन आज कई शब्दों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। मसलन अगर तमाम चैनलों पर नज़र डालें तो कई शब्द या फिर नाम अलग - अलग चैनलों में अलग - अलग तरीके से लिखे जाते हैं जैसे -- ऐलान - एलान- ईमान - इमान / ईनाम - इनाम- ईरान - इरान / ईराक - इराक- सचिन तेंदुलकर - सचिन तेंडुलकर- सौरव गांगुली - सौरभ गांगुली ज़ाहिर है इसे देखकर आम लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है। ऐसे में शब्दों का एक व्यवस्थित कोष तैयार करना बेहद जरूरी है। वैसे इस मुद्दे पर बाद पर बाद में चर्चा होगी। आज हम आपको बतायेंगे कि टेलीविजन न्यूज़ चैनलों की भाषा में शब्द संबंधी क्या करना चाहिए और क्या नही।
शब्द संबंधी - क्या न करें १) कभी भी भारी - भरकम शब्द का इस्तेमाल न करें।२) हिन्दी के कठिन शब्दों का इस्तेमाल न करें ।३) संस्कृतनिष्ठ शब्दों का दुराग्रह ठीक नही।४) हिन्दी के वैसे शब्द जिसका प्रचलन आम लोगों में नही उसका प्रयोग न करें।५) अन्य भाषाओं के इस्तेमाल में सावधानी बरतें।६) संस्कृत के शब्दों के साथ ही उर्दू को भी ठूंसना ठीक नही कहा जा सकता।७) प्राय ऐसा देखने में आता है कि महाप्राण शब्दों का प्रयोग ठीक नही माना जा सकता , (महाप्राण शब्द वो हैं, जिनमें किसी वर्ग के दुसरे या चौथे वर्ण का प्रयोग हुआ हो) हालांकि आजकल इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है। ८) कई ऐसे शब्द हैं जिनके शुद्ध रूप तो कुछ और हैं , लेकिन बोलचाल में लोग उसका अपभ्रंश रूप प्रयोग में लाते हैं।९) टेलीविजन में उसने या उन्होंने का इस्तेमाल नही होता, बजाए इसके सीधे नाम का इस्तेमाल करते हैं। अगर पैकेज के एंकर में इस्तेमाल कर भी लें तो भी पैकेज अन्दर तो बिल्कुल भी इस्तेमाल नही करना चाहिए। क्योंकि किसी का विजुअल दिखते हुए आप उसने या उन्होंने कहेंगे तो टेलीविजन के व्याकरण के हिसाब से ये एक बड़ी गलती होगी। और इससे पैकेज से आत्मियता घटेगी। सीधा नाम लेना जरूरी है।शब्द संबंधी - क्या करें १) हमेशा आसान शब्दों का ही प्रयोग करें२) हिन्दी के ऐसे शब्द जिसे गैर हिन्दी भाषियों के लिए भी समझना बेहद आसान हो३) उर्दू के आसान शब्दों का इस्तेमाल जरूर करें , इसके कई कारण हैं - भाषा की व्यापकता का पता चलता है। शब्दों में गूंज पैदा होती है , जो कि सुनने में अच्छा लगता है। सही मायने में हिन्दी और उर्दू कीआपसी लडाई कुछ लोगों की निजी लडाई के अलावा कुछ और नही है, कुछ धार्मिक कट्टरपंथियों ने इस तरह के विभाजन पैदा किए हैं। भारत जैसे देश में शब्दों के मिले - जुले रूप को प्रयोग करने से सामाजिक समरसता भी पैदा होगी। इससे कई देशों में हिन्दी चैनलों के आत्मसात करने की परम्परा बढेगी।४) छोटे - छोटे शब्दों के इस्तेमाल को बढावा दें। ५) आंचलिक शब्दों का इस्तेमाल जरूर करें, लेकिन कोशिश ये होनी चाहिए किधीरे -धीरे मानक शब्दों का प्रयोग बढे, इससे ये सीखने - सिखाने का भी एक प्रभावी माध्यम बन सकता है। ६) विदेशी शब्दों को हमेशा सावधानीपूर्वक ही इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिस भाषा से शब्दों को लिया गया है, वहाँ पर उसका उच्चारण कैसा होता है। लेकिन वैसा का वैसा ही रुढ़ रूप में नही लिया जा सकता है। बल्कि उसे अपनी शक्ल में ढाला जा सकता है। ७) कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आम लोगों की जेहन में तो सामान्य नही है, लेकिन परिस्थिति के अनुसार जरूरी और कहने में आसान होता है। हालांकि यहाँ इस बात का ध्यान रखे किइस शब्द के साथ उसका सामान्य अर्थ भी बताएं और लगातार कुछ समय तक उस शब्द का प्रयोग करते रहें। इससे वो शब्द लोगों की जुबान पर चढ़ सकता है। इस अर्थ में टेलीविजन सिखाने का भी माध्यम हो सकता है। जैसे - टशन, किन्नर८) तकनीकी शब्दों के प्रयोग में उसके हिन्दी प्रयोग का दुराग्रह ना पालें। बल्कि कई बार ऐसा होता है किलोग उसके हिन्दी अर्थ की बजाए उसके अंग्रेज़ी शब्द को बड़ी आसानी से समझ सकते हैं। इस सन्दर्भ में एक वाकया याद आ रहा है... मेरे एक मित्र जो पटना के हैं, उन्हें सचिवालय जाना था। मित्र जहाँ पर खड़ा था उसे पता नही था कि सचिवालय पास में ही है। जहाँ पैदल ही आसानी से पहुँचा जा सकता है। लेकिन रिक्शेवाला पता नही क्या सोंचकर दूर किसी दुसरे ऑफिस में ले गया। टैब मित्र महाशय रिक्शावाले से झल्ला पड़े कि मुझे तो सचिवालय जाना है , तुम मुझे कहाँ ले आए। लेकिन रिक्शावाला समझने में असमर्थ था कि मित्र महोदय किस जगह जाने की बात कह रहे हैं। इसके बाद वो रिक्शावाला से कहने लगे की जब तुम्हे पता नही था तो बैठाया क्यों। वह गुस्से में कहने लगे कि तुम्हे पटना सैकरेटेरीयट के बारेमें पता नही । तो रिक्शावाला कहने लगा कि आपको सैकरेटेरीयट जाना है , वो बगल में ही था, आपने पहले क्यों नही बताया। हालांकि सचिवालय भी अच्छा और लोकप्रिय शब्द है, लेकिन देखिए अंग्रेज़ी और हिन्दी शब्दों के इस्तेमाल से क्या - क्या हो सकता है। तो ये है शब्दों का खेल, वैसे टेलीविजन के व्याकरण में वाक्य संबंधी भी कई खेल चल रहे हैं, इससे अनजान रहना किसी के लिए भी घातक हो सकता है। वाक्य संबंधी चर्चा करेंगे, लेकिन अगले लेख में एक छोटे से ब्रेक के बाद।
शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008
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