रविवार, 30 नवंबर 2008

भाषा का खेल - पार्ट 4

क्या करें , क्या न करें

टेलीविज़न पत्रकारिता में भाषा का जो अहम रोल है, वही भाषा में शब्दों का। लेकिन शब्दों की खूबसूरती को पिरोना भी एक बेहतरीन कला है। अगर आपके वाक्य ही अर्थहीन , उलझाऊ या जटिल होंगे ,तो ये समझ लीजिए कि आपने भाषा का कत्ल कर दिया। इस लेख के माध्यम से मैं आपको वाक्य संबंधी कुछ मोटी -मोटी जानकारियां दूंगा जिनका टेलीविजन में बहुत अधिक महत्त्व है। वाक्य संबंधी - क्या न करें
वाक्य कभी भी लंबे नही होने चाहिए।
वाक्य में ज्यादा,क्योंकि,इसलिए,चूँकि जैसे शब्दों का प्रयोग ना करें।
वाक्य में छह या सात से ज्यादा शब्द ना हों।
वाक्य में कभी भी गौरतलब है,ध्यातव्य है या फिर इस तरह के कोई उद्धरण नही दिए जाने चाहिए। दरअसल ये शब्द ही टेलीविजन पत्रकारिता में फिट नही बैठते। आपको हमेशा विजुअल को ध्यान में रखना होता है। इसलिए जो कहना हो , साफ तौर पर कहें। पुरानी चीजों को भी याद कराएँ - लेकिन सीधा समय , साल या बाकी जानकारी के साथ बताएं।
वाक्य को जटिल नही बनाना नही चाहिए, ऐसा इसलिए कि टेलीविजन में एक बार बोल दिए जाने के बाद दुबारा उसके सुनने की गुंजाईश नही बची रहती। ऐसे में अगर एक बार कई चीज समझ में न आए तो फिर उसे दुबारा समझने का कोई चारा नही बचता। फिर दर्शकों के लिए आपका चैनल देखने का कोई मतलब नही।
वाक्य की शुरुआत कभी भी अधूरे अर्थ वाले शब्दों से नही की जानी चाहिए, मसलन क्योंकि , लेकिन, परन्तु, किंतु।
हिन्दी में वाक्यों का एक सामान्य फॉरमेट है, सर्वनाम - मुख्य क्रिया - सहायक क्रिया, इस भाषा की खासियत है, साथ ही पत्रकारिता के लिहाज से भाषा की ये शक्ति है। दरअसल इस फॉरमेट में आप अधूरे वाक्य को पढ़कर ही समझ सकते हैं कि आने वाला शब्द क्या होगा। मसलन अगर पहाड़ से पत्थर गिरने की कोई घटना हुई हो और उसे आपको बताना हो तो ... आज पहाड़ से पत्थर ( गिरा।) उसमें कई लोग घायल ( हो गए। ) प्रशासन लोगों की मदद ( कर रहा है ।)लेकिन लोगों तक राहत नही पहुँच ( पा रहा है ।) हालाँकि जिन लोगों तक राहत के सामान ( पहुंचे हैं ), वे बेहद खुश दिखाई ( दे रहे हैं ।)तो आप देख सकते हैं कि हिन्दी की ये एक ऐसी शक्ति है जिससे पढने वाले का कुछ परिश्रम बच जाता है। ऐसे में न्यूजरीडर बड़े इत्मिनान से आगे के शब्दों को बिना पढ़े समझ सकता है। इतना ही नही इस फॉरमेट की खास बात यह नही कि ये लोगों को आसानी से समझ में आता है। वो भी जो कम पढ़े - लिखे हैं। इसलिए भाषा के इस नियम का हमेशा पालन करना चाहिए। इस फॉरमेट के साथ सामान्य तौर पर छेड़ - छाड़ नही करना चाहिए।
वाक्य संबंधी क्या करें
वाक्य हमेशा छोटे होने चाहिए, कोशिश करें कि एक वाक्य में ज्यादा से ज्यादा छह -सात से ज्यादा शब्द ना आएँ। वैसे इसकी कोई सीमा नहीं,आप चाहें तो तीन-चार शब्दों में भी अपनी बात कह सकते हैं।
वाक्य बेहद सरल होने चाहिए, टेलीविज़न पत्रकारिता करने वाले इसे गांठ बांधकर रख लें। क्योंकि टेलीविज़न में दर्शक का ध्यान एक साथ कई चीजों पर होता है, जैसे - दृश्य , आवाज , स्क्रीन पर दिखने वाले शब्द (स्लग, एस्टन), ग्राफिक्स, टिकर, एंकर का आउटलुक। अब जरा आप खुद सोंचिए कि एक दर्शक समाचार देखने के लिए कितनी मेहनत करता है। ऐसे में अगर आपकी भाषा जरा सा भी बोझिल हुई तो समझिए कि दर्शक तुंरत आपका चैनल बदल देगा।
वाक्य को हमेशा कर्त वाच्य में लिखा जन चाहिए , न कि कर्म वाच्य में। ये हिन्दी का अपना रूप है, अपनी ताकत है। बातचीत के लिए भी आसान माना जाता है. मसलन, अगर कही पुल का उदघाटन किया गया हो तो हमेशा लिखा जाएगा कि प्रधानमंत्री ने आज पुल का उदघाटन किया। वहीं कर्मवाच्य में लिखे जाते तो - पुल का उदघाटन प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया। या फिर ये भी लिख देते कि प्रधानमंत्री के द्वारा पुल का उदघाटन किया गया।
ऊपर के दोनों वाक्यों को सुनकर और पढ़कर खुद भी फैसला कर सकते हैं कि कौन सा वाक्य ठीक है, और कौन सा ठीक नही है। इसमें दूसरा लिखा वाक्य बेहद उलझाऊ है,ये टेलीविजन का अपना गुण भी नही है। ऐसा लग रहा है कि मानो सूचना देने के लिए ही ये बात कही गई है। इसमें जीवंतता का अभाव है, जबकि पहले वाक्य को बड़ी ही ताकत से बोलते हैं। इससे ये भी झलकता है कि न सिर्फ ये बड़ी सूचना है, बल्कि ये आपके लिए बेहद जरूरी भी है। हाँ एक बात और,पहला वाक्य हिन्दी की अपनी भाषा है, बोलचाल का गुण है। जबकि दूसरा वाक्य अनुवाद की भाषा है। ये अंग्रेजी भाषा का गुण है। हिन्दी में द्वारा की मनाही का सबसे कारण यही है।
पैकेज के सभी फारमेट में वाक्यों की रचना अलग होती है। मसलन एंकर लिखने में हमेशा वर्तमान काल का प्रयोग किया जाना चाहिए।
वाक्य को हमेशा ऐसे लिखा जाना चाहिए कि लगे कि घटना का अभी से ही ताल्लुक है। वाक्य को वर्तमान काल में ही लिखें। हिन्दी फिसलने वाली भाषा है, हिन्दी तरन्नुम की भाषा है। बोलने के क्रम में हमेशा ये भाषा फिसलती है। मैंने ऊपर बताया कि किस तरह से हिन्दी का सामान्य फॉरमेट है - सर्वनाम - मुख्य क्रिया - सहायक क्रिया का। ऐसे में जब भी कोई हिन्दी बोलता है, तो उसे आने वाले कई शब्द यूँ ही मिल जाते हैं। जो हमेशा एक जैसे होते हैं। ऐसे में ये भाषा फिसलती है, अगर कोई अटक - अटक कर पढता है तो समझ लीजिए कि उसे या तो हिन्दी की समझ नही है या फिर उसे पढ़ना या बोलना नही आता। यहाँ भाषा का विन्यास हमेशा एक खास तरीके से ही आगे बढ़ता है - मसलन : मै दफ्तर जा (रहा हूँ), मै आम खा (रहा हूँ), मेरी साइकिल खराब (हो गई), प्रिंस गड्ढे में (गिर पड़ा), राजधानी एक्सप्रेस तीन घंटे की देरी (से चल रही है)।ये तो बात हुई वाक्य सम्बन्धी सावधानियों की। लेकिन टेलीविजन की पत्रकारिता में इतना जानना ही काफी नही। बल्कि भाषा में इन दिनों चमत्कार करने की परंपरा शुरू हो चुकी है। अगर आप टेलीविजन न्यूज़ चैनलों की स्क्रीन को देखें तो उसमें कई बारगी तस्वीरें दिखती ही नही। बस शब्द नाचते नजर आते हैं। फिर भी आप उस कार्यक्रम को देखने के लिए विवश हो जाते हैं। ये सब शब्दों और वाक्यों के चमत्कार से हो रहा है। अगर आप ये चमत्कार नही जानते , या फिर नही करना चाहते तो बस समझ लीजिए कि आप टेलीविजन पत्रकारिता के लिहाज से आउटडेटेड हैं।

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