कहते हैं टीम इंडिया में एक से बढ़कर एक हीरा है। कहते हैं इस समय की इंडियन क्रिकेट टीम देश की सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट टीम है। कहते हैं भारतीय क्रिकेट का बैटिंग लाइन अप इससे बढ़िया कभी नहीं रहा। बॉलिंग में भी ऐसी वेरायटी कभी नहीं रही। ये टीम दुनिया की किसी भी टीम का कहीं भी मुकाबला कर सकती है। इस टीम में क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में जीतते रहने का हुनर है। इसे सिर्फ जीतना आता है। हारना तो बस समझ लीजिए कि जब ये टीम चाहेगी तभी हारेगी।
पर ये क्या...??? नेपियर में तो पूरी टीम ही नप गई... क्या बैटिंग, क्या बॉलिंग और क्या फिल्डिंग! हर मोर्चे पर इतना लिजलिजापन... क्या हो गया टीम इंडिया को... वही सचिन, वही सहवाग, वही लक्ष्मण... द्रविड़... विस्फोटक युवराज भी हैं... मगर सबके सब तीन सौ पहुंचते पहुंचते ही निपट गए... ये भी न सोचा कि कीवियों ने पहाड़ सा रन खड़ा दिया है... इतना ही नहीं जरा बॉलिंग तो देखिए... जहीर, दिल्ली एक्सप्रेस ईशांत शर्मा, टर्बनेटर हरभजन सिंह और संकट मोचक बॉलर युवराज भी टीम में ही हैं... लेकिन सबके सब बेकार... क्या हो गया इस टीम को? कहीं किसी की बुरी नजर तो नहीं लग गई या फिर शनि ग्रह इन पर हावी हो गया है? क्या किसी ने जादू टोना कर दिया?
लेकिन जनाब जरा रुकिए। हकीकत से रूबरू होइये क्योंकि टीम इंडिया के ये सारे धुरंधर भले ही हीरे हों... लेकिन इन्हें परखने वाला जौहरी जो नहीं है टीम में। असल में ये हीरा तभी तक हैं जब इनके साथ धोनी नाम का कोहिनूर हीरा होता है। ये तभी चमकते हैं, जब इन पर धोनी की पॉलिश चढ़ती है। वर्ना ऐसा कैसे हो जाता कि जिस टीम ने पिछले 6 में से 5 मैच जीते हों (वो भी टेस्ट में)... उनके सामने कीवियों ने पहले ही दिन हिमाकत करते हुए 351 रन ठोक दिए और पूरी टीम बेसहारा नजर आती रही।
इसलिए क्रिकेट के दीवानों सुन लो। सचिन के प्रशंसकों अपने दिल को कठोर बना लो। युवराज के समर्थकों जरा होश में आओ। ये समझ लो कि ये सारे क्रिकेटर तभी काम आ सकते हैं... जब इनके दिमाग में धोनी का जादू चलता हो। लेकिन क्या क्रिकेट के मैदान के ये जांबाज धोनी के बिना एक मैच भी नहीं खेल सकते? क्या माही के विजय अभियान को ये एक पल में ही चकनाचूर कर देंगे। अगर ऐसा हुआ तो ये टीम किस मुंह से धोनी के पास जाएगी? लाचार कप्तान सहवाग धोनी से क्या कहेंगे कि जिस तैंतीस साल की अमरगाता को तुमने लिख छोड़ा था... उसे हमने इकतालीस साल के यादगार सफर (सीरीज जीतने का सपना) में तब्दील करने की बजाए धुमिल कर दिया है... इसलिए क्रिकेट के ऐ कर्णवीरों अब भी होश में आए... अब भी दो दिन बचे हैं... कम से जीत न मिले॥ मगर हारकर तो मत आना...
हरीश चंद्र बर्णवाल
शनिवार, 28 मार्च 2009
मंगलवार, 24 मार्च 2009
ज़ी न्यूज़ की अलका सक्सेना सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ एंकर और आजतक की श्वेता सिंह सबसे ग्लैमरस महिला एंकर बनी
हिंदी के समाचार चैनलों में काम करने वाली महिलाओं को केंद्र में रखकर मीडिया खबर।कॉम ने अपने प्रिंट पार्टनर मीडिया मंत्र (मीडिया पर केंद्रित हिंदी की मासिक पत्रिका) के साथ मिलकर पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वे करवाया। सर्वश्रेष्ठ महिला एंकर और सबसे ग्लैमरस एंकर के अलावा कुल 12 सवाल सर्वे में पूछे गए। यह सर्वे 15 फरवरी से 6 मार्च के बीच हुआ। पुरा परिणाम आप मीडिया ख़बर.कॉम पर पढ़ सकते हैं। लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=107&tid=808
गुरुवार, 19 मार्च 2009
लघुकथा - गरीब तो बच जाएंगे...
मंदी की महामारी ने हर तरफ अपना जाल फैला लिया है। किसी कंपनी को कैंसर हो चुका है, तो किसी को एड्स। कर्मचारियों की छंटनी का खतरा हर तरफ मुंह बाये खड़ा है। जेट एयरवेज ने 800 कर्मचारियों को रुखसत क्या किया, लगा पूरे देश में भूचाल आ गया हो। न्यूज चैनल में भले ही ये खबर आम खबरों की तरह आकर चली गई हो, लेकिन फिल्म सिटी में टेलीविजन के बुद्धिजीवी पत्रकारों में बहस छिड़ी हुई थी। महंगी गाड़ियों की कतारों के बीच एक विदेशी गाड़ी के इर्द गिर्द दर्जन भर पत्रकार जमा थे। कार के बोनट पर विदेशी शराब की कई बोतलें, चिकन, चिप्स रखे हुए थे। जाम छलक रहा था, और टेलीविजन पत्रकारों के चेहरे से गंभीरता के रस टपक रहे थे। मुद्दा बड़ा था - इतनी खूंखार मंदी के बाद अब क्या होगा इस देश का।
विदर्भ में हजारों किसानों की आत्महत्या, बिहार- झारखंड में नक्सलियों के मुद्दे पर नाक मुंह बिचकाने वाले इन पत्रकारों को अचानक देश में आई इस मंदी का खतरा नजर आने लगा था। बहस पूरे शबाब पर थी
- “ इस देश को अब कोई नहीं बचा सकता। कहीं इस मंदी से उबरने की सूरत नहीं ” – अपने आप को बुजुर्ग की तरह दिखाने वाले एक कम उम्र के पत्रकार ने कहा
- “ ऐसा बिल्कुल नहीं है, इस मंदी का असर ज्यादा लोगों पर नहीं पड़ा है, देश के 70-80 फीसदी लोग तो इसके बारे में जानेंगे भी नहीं ” – एक चैनल के नये नवेले एंकर ने जवाब दिया, जिन्होंने दलबदलू की तरह तीन साल में चार चैनल बदल लिया है
- “ तो क्या हुआ, ऐसे लोग थोड़ी ने देश में राज करते हैं, ये तो भीड़ है। असल तो कारपोरेट जगत से जुड़े लोग हैं, जैसे आईटी, बैंकिंग, रियल इस्टेट.... मीडिया से जुडे लोग... जो उधार की जिंदगी जी रहे हैं ”... एक बुजुर्ग पत्रकार ने टोका (इस जनाब को मीडिया के लोग तो बुजुर्ग मानते ही हैं, लेकिन ये खुद को उससे भी ज्यादा वरिष्ठ मानते हैं)
- “ सही बात है अब हमारे ही घरवालों को ले लो, उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए कोई कर्ज तो लिया नहीं, पहले कमाए, पैसा जमा किया और फिर सामान खरीदा ” – कार के पीछे से किसी पत्रकार की आवाज आई
- “ और हमारी जिंदगी में तो कार, घर हर कुछ उधार पर है ”
- “ वैसे यार ये मंदी से कुछ नहीं होने वाला, वैसे ही इस देश में इतनी गरीबी है कि मंदी वहां तक पहुंच भी नहीं पाएगी ”
- “ यार मंदी से गरीबों का क्या मतलब, इस मंदी में गरीब तो जी जाएंगे, लेकिन अमीरों को कौन बचाएगा ” – व्हीस्की की तीसरी पैग लेते हुए एक पत्रकार ने कहा
- “ हां यार, हां यार ’
- “ सही कहा ”
- “ क्या बात है, गरीब तो बच जाएंगे, लेकिन हमलोगों को कौन बचाएगा ”
नशे की दुनिया में गोते लगा चुके सारे पत्रकार अब तक अपनी अपनी बात ऱखने में लगे थे। सब कोई बोल रहा था। सुन कोई किसी की नहीं रहा था। लेकिन अचानक आखिरी लाइन पर सब अटक गए। और सब एकमत हो गए। बहस खत्म हो चुकी थी। और सब एक दूसरे को चीयर्स कर रहे थे।
हरीश चंद्र बर्णवाल
ASSOCIATE EXECUTIVE PRODUCER, IBN 7
विदर्भ में हजारों किसानों की आत्महत्या, बिहार- झारखंड में नक्सलियों के मुद्दे पर नाक मुंह बिचकाने वाले इन पत्रकारों को अचानक देश में आई इस मंदी का खतरा नजर आने लगा था। बहस पूरे शबाब पर थी
- “ इस देश को अब कोई नहीं बचा सकता। कहीं इस मंदी से उबरने की सूरत नहीं ” – अपने आप को बुजुर्ग की तरह दिखाने वाले एक कम उम्र के पत्रकार ने कहा
- “ ऐसा बिल्कुल नहीं है, इस मंदी का असर ज्यादा लोगों पर नहीं पड़ा है, देश के 70-80 फीसदी लोग तो इसके बारे में जानेंगे भी नहीं ” – एक चैनल के नये नवेले एंकर ने जवाब दिया, जिन्होंने दलबदलू की तरह तीन साल में चार चैनल बदल लिया है
- “ तो क्या हुआ, ऐसे लोग थोड़ी ने देश में राज करते हैं, ये तो भीड़ है। असल तो कारपोरेट जगत से जुड़े लोग हैं, जैसे आईटी, बैंकिंग, रियल इस्टेट.... मीडिया से जुडे लोग... जो उधार की जिंदगी जी रहे हैं ”... एक बुजुर्ग पत्रकार ने टोका (इस जनाब को मीडिया के लोग तो बुजुर्ग मानते ही हैं, लेकिन ये खुद को उससे भी ज्यादा वरिष्ठ मानते हैं)
- “ सही बात है अब हमारे ही घरवालों को ले लो, उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए कोई कर्ज तो लिया नहीं, पहले कमाए, पैसा जमा किया और फिर सामान खरीदा ” – कार के पीछे से किसी पत्रकार की आवाज आई
- “ और हमारी जिंदगी में तो कार, घर हर कुछ उधार पर है ”
- “ वैसे यार ये मंदी से कुछ नहीं होने वाला, वैसे ही इस देश में इतनी गरीबी है कि मंदी वहां तक पहुंच भी नहीं पाएगी ”
- “ यार मंदी से गरीबों का क्या मतलब, इस मंदी में गरीब तो जी जाएंगे, लेकिन अमीरों को कौन बचाएगा ” – व्हीस्की की तीसरी पैग लेते हुए एक पत्रकार ने कहा
- “ हां यार, हां यार ’
- “ सही कहा ”
- “ क्या बात है, गरीब तो बच जाएंगे, लेकिन हमलोगों को कौन बचाएगा ”
नशे की दुनिया में गोते लगा चुके सारे पत्रकार अब तक अपनी अपनी बात ऱखने में लगे थे। सब कोई बोल रहा था। सुन कोई किसी की नहीं रहा था। लेकिन अचानक आखिरी लाइन पर सब अटक गए। और सब एकमत हो गए। बहस खत्म हो चुकी थी। और सब एक दूसरे को चीयर्स कर रहे थे।
हरीश चंद्र बर्णवाल
ASSOCIATE EXECUTIVE PRODUCER, IBN 7
लघु कथा सिर्फ 40 मरे
भारत बांग्लादेश सीमा पर मुठभेड़ जारी थी। हर दिन तीस-चालीस लोगों के मारे जाने की खबर आ रही थी। मीडिया ने भी इस खबर को खूब तवज्जो दिया। एक बार भारतीय लोगों को जानवरों की तरह लकड़ी से बांधकर ले जाए जाने की तस्वीर जब कुछ स्थानीय अखबारों में छपी। तो न्यूज चैनलों के लिए मानो भरा पूरा मसाला ही मिल गया। इस खबर को कई दिनों तक दिखाते रहे... और लोगों के भीतर राष्ट्र भावना जगाने की कोशिश करते रहे। धीरे-धीरे इस खबर का इतना पोस्टमार्टम कर दिया कि कहने को कुछ बचा ही नहीं। यहां तक कि इसकी तुलना भारत पाकिस्तान और भारत चीन युद्ध से भी कर चुके थे। बांग्लादेश को 1971 की जंग के दौरान मदद करने की दुहाई का एकालाप भी कर चुके थे। हालांकि इस समस्या का तो कुछ हल नहीं हुआ, लेकिन जहां अखबारों के किसी कोने में अब भी छोटी मोटी खबरें छप रही थीं, वहीं टेलीविजन न्यूज चैनलों पर यकायक ये खबरें चलनी बंद हो गईं।
कुछ दिनों बाद ठीक उसी समय एसाइनमेंट पर प्रिंट के एक बड़े पत्रकार कमल ने ज्वाइन किया था। कमल पहली बार किसी टेलीविजन न्यूज चैनल की मीटिंग में शामिल थे। उन्होंने मीटिंग के दौरान उत्साहित होकर बताया कि बहुत बड़ी खबर है। भारत बांग्लादेश सीमा पर फिर मुठभेड़ हुई है। इस बार भी 40 लोग मारे गए... इतना सुनते ही आउटपुट के सीनियर प्रोड्यूसर रमाकांत ने जवाब दिया, सिर्फ 40 मरे... और ये बड़ी खबर है... ये तो हम पहले भी चला चुके हैं... इसमें नया क्या है। जब सौ या डेढ़ सौ लोग मर जाएं तब बताइयेगा।
कुछ दिनों बाद ठीक उसी समय एसाइनमेंट पर प्रिंट के एक बड़े पत्रकार कमल ने ज्वाइन किया था। कमल पहली बार किसी टेलीविजन न्यूज चैनल की मीटिंग में शामिल थे। उन्होंने मीटिंग के दौरान उत्साहित होकर बताया कि बहुत बड़ी खबर है। भारत बांग्लादेश सीमा पर फिर मुठभेड़ हुई है। इस बार भी 40 लोग मारे गए... इतना सुनते ही आउटपुट के सीनियर प्रोड्यूसर रमाकांत ने जवाब दिया, सिर्फ 40 मरे... और ये बड़ी खबर है... ये तो हम पहले भी चला चुके हैं... इसमें नया क्या है। जब सौ या डेढ़ सौ लोग मर जाएं तब बताइयेगा।
लघु कथा - तीन गलती
देश के एक बड़े अंग्रेजी अखबार में शालिनी की आत्महत्या की खबर बड़े-बड़े अक्षरों में छपी थी। इंदौर में रहने वाली 16 साल की शालिनी की आत्महत्या उतनी बड़ी खबर नहीं थी, जितनी बड़ी उसके आत्महत्या की वजह। टेलीविजन न्यूज चैनलों पर दिखाए जाने वाले महाविनाश की खबर देखकर वो परेशान हो चुकी थी। इसी उधेड़बुन में उसने आत्महत्या कर ली थी। हालांकि न्यूज चैनल पहले भी दो-तीन बार महाविनाश की चेतावनी दे चुके थे, लेकिन इस बार महामशीन को लेकर महाविनाश का हो हल्ला कुछ ज्यादा ही जोर शोर से मचा रहे थे। ऐसे में विनाश की पहली झलक नजर आने लगी थी। फिर क्या था सारे पत्रकार पहुंच गए इंदौर में शालिनी के घर। पूरा मजमा लगा हुआ था। जैसे ही शालिनी के पिता घर से बाहर निकले। पत्रकारों ने सवालों के तोप गोले दाग दिए
- शालिनी ने क्यों आत्महत्या की?
- क्या शालिनी वाकई डरी हुई थी?
- क्या ये आत्महत्या महाविनाश का असर है?
- क्या शालिनी की मौत महाविनाश की पहली कड़ी है?
शालिनी के पिता ने पहले तो सारे पत्रकारों को घूरते हुए गुर्राया... औऱ फिर अचानक संयमित होकर कहा कि शालिनी ने तीन गलती की। पहली गलती तो ये थी कि मना करने के बावजूद उसने न्यूज चैनल देखा। दूसरी गलती ये थी कि इसे सच मान लिया। और तीसरी और आखिरी गलती ये थी कि आखिर तक वो इन तथाकथित चैनलों को न्यूज चैनल ही मानती रही।
हरीश चंद्र बर्णवाल
- शालिनी ने क्यों आत्महत्या की?
- क्या शालिनी वाकई डरी हुई थी?
- क्या ये आत्महत्या महाविनाश का असर है?
- क्या शालिनी की मौत महाविनाश की पहली कड़ी है?
शालिनी के पिता ने पहले तो सारे पत्रकारों को घूरते हुए गुर्राया... औऱ फिर अचानक संयमित होकर कहा कि शालिनी ने तीन गलती की। पहली गलती तो ये थी कि मना करने के बावजूद उसने न्यूज चैनल देखा। दूसरी गलती ये थी कि इसे सच मान लिया। और तीसरी और आखिरी गलती ये थी कि आखिर तक वो इन तथाकथित चैनलों को न्यूज चैनल ही मानती रही।
हरीश चंद्र बर्णवाल
लघुकथा मायूसी
न्यूज रूम में मायूसी छाई हुई थी। वो भी सिर्फ एक हमारे चैनल के लिए ही क्यों, बल्कि इंडस्ट्री के तमाम बाकी नये न्यूज चैनलों के लिए बुरा दौर जो चल रहा था। कोई बड़ी खबर ही नहीं आ रही थी। चूंकि टेलीविजन इंडस्ट्री के लिए न्यूज चैनल बिल्कुल नए नए थे। इसलिए झगड़ा टीआरपी का नहीं था, बल्कि अपने अस्तित्व को बनाए रखने का था। लोग न्यूज चैनल देखें, इसके लिए जरूरी था कि बड़ी घटनाएं होती रहें। टेलीविजन के नये नवेले पत्रकारों में भी काम करने का जज्बा पूरे उफान पर था। पर हर रोज कहां से कोई बड़ी घटना हो, जिसे बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाए। कोई खबर आए भी तो वो दो-तीन मिनट से ज्यादा देर टिकती भी नहीं। ऐसे में पिछले कई दिनों से न्यूजरूम में मनहूसी छाई हुई थी।
हफ्ते भर बाद एक दिन अचानक न्यूजरूम में हलचल शुरू हो गई। एसाइनमेंट से खबर आई कि अमृतसर में आतंकवादियों ने एक प्लेन हाइजैक कर लिया है। फिर क्या था। नये नये टेलीविजन न्यूज चैनल के सारे लखटकिया पत्रकार (हजारों-टकिया पत्रकार भी शामिल हैं, लेकिन अखबार के पत्रकारों के सामने खुद को लखटकिया ही मानते थे) इस खबर पर टूट पड़े। उन्हें ये पता था कि इस खबर में काफी दम है। देश के एलिट क्लास के लिए ये एक बहुत बड़ी खबर है। दरअसल इससे पहले आईसी 814 विमान के अपहरण के दौरान टेलीविजन न्यूज चैनलों की लोकप्रियता में भारी इजाफा हुआ था। तमाम न्यूज चैनलों की टीआरपी भी एटरटेनमेंट चैनलों के मुकाबले काफी बढ़ी थी। ऐसे में सारे पत्रकार युद्धस्तर पर इस खबर पर पिल पड़े।
कोई ब्रेकिंग न्यूज लिखने में लगा था। तो कोई एंकर को घटना की जानकारी देने में। कोई प्लेन हाइजैक की भयावहता को अपनी स्क्रिप्ट की धार में पिरो रहा था, तो कोई इस घटना के बारे में तफ्सील से पता करने में। जूनियर पत्रकारों में कोई अमृतसर का फुटेज निकाल रहा था तो कोई आईसी 814 विमान का फुटेज। एक शख्स तो बकायदा आईसी 814 विमान अपहरण कांड के जरिये ये लिखने में जुटा था कि विमान अपरहण की ये घटना कितनी बड़ी है या फिर हो सकती है।
इस खबर को ताने हुए करीब 2-3 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक एसाइनमेंट के सीनियर एडिटर नवची चीखते हुए आए और आउटपुट से कहने लगे कि ये खबर ड्रॉप कर दो। ये सुनते ही आउट पुट के तमाम लोगों के मुंह से एक चीख निकली – “क्या हुआ, क्यों ड्रॉप कर दें।“ फिर अचानक नवची ने आउट पुट के सीनियर एडिटर पिकलू की तरफ देखते हुए कहा “कोई अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि खुद सेना के जवान मॉक एक्सरसाइज कर रहे हैं। दरअसल वे देखना चाहते थे कि अगर इस बार अपहरण हुआ तो वो कैसे हेंडल करेंगे।“ इसे सुनते ही पिकलू ने आउट पुट के लोगों को सारे काम रोकने के आदेश दिए... और कहा “इसे क्या दिखाएं… साला ये भी टुच्ची खबर निकली। अब इसमें भी कोई दम नहीं।“ एक बार फिर न्यूजरूम में मायूसी छा गई।
हरीश चंद्र बर्णवाल
hcburnwal@gmail.com
IBN7
हफ्ते भर बाद एक दिन अचानक न्यूजरूम में हलचल शुरू हो गई। एसाइनमेंट से खबर आई कि अमृतसर में आतंकवादियों ने एक प्लेन हाइजैक कर लिया है। फिर क्या था। नये नये टेलीविजन न्यूज चैनल के सारे लखटकिया पत्रकार (हजारों-टकिया पत्रकार भी शामिल हैं, लेकिन अखबार के पत्रकारों के सामने खुद को लखटकिया ही मानते थे) इस खबर पर टूट पड़े। उन्हें ये पता था कि इस खबर में काफी दम है। देश के एलिट क्लास के लिए ये एक बहुत बड़ी खबर है। दरअसल इससे पहले आईसी 814 विमान के अपहरण के दौरान टेलीविजन न्यूज चैनलों की लोकप्रियता में भारी इजाफा हुआ था। तमाम न्यूज चैनलों की टीआरपी भी एटरटेनमेंट चैनलों के मुकाबले काफी बढ़ी थी। ऐसे में सारे पत्रकार युद्धस्तर पर इस खबर पर पिल पड़े।
कोई ब्रेकिंग न्यूज लिखने में लगा था। तो कोई एंकर को घटना की जानकारी देने में। कोई प्लेन हाइजैक की भयावहता को अपनी स्क्रिप्ट की धार में पिरो रहा था, तो कोई इस घटना के बारे में तफ्सील से पता करने में। जूनियर पत्रकारों में कोई अमृतसर का फुटेज निकाल रहा था तो कोई आईसी 814 विमान का फुटेज। एक शख्स तो बकायदा आईसी 814 विमान अपहरण कांड के जरिये ये लिखने में जुटा था कि विमान अपरहण की ये घटना कितनी बड़ी है या फिर हो सकती है।
इस खबर को ताने हुए करीब 2-3 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक एसाइनमेंट के सीनियर एडिटर नवची चीखते हुए आए और आउटपुट से कहने लगे कि ये खबर ड्रॉप कर दो। ये सुनते ही आउट पुट के तमाम लोगों के मुंह से एक चीख निकली – “क्या हुआ, क्यों ड्रॉप कर दें।“ फिर अचानक नवची ने आउट पुट के सीनियर एडिटर पिकलू की तरफ देखते हुए कहा “कोई अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि खुद सेना के जवान मॉक एक्सरसाइज कर रहे हैं। दरअसल वे देखना चाहते थे कि अगर इस बार अपहरण हुआ तो वो कैसे हेंडल करेंगे।“ इसे सुनते ही पिकलू ने आउट पुट के लोगों को सारे काम रोकने के आदेश दिए... और कहा “इसे क्या दिखाएं… साला ये भी टुच्ची खबर निकली। अब इसमें भी कोई दम नहीं।“ एक बार फिर न्यूजरूम में मायूसी छा गई।
हरीश चंद्र बर्णवाल
hcburnwal@gmail.com
IBN7
सदस्यता लें
संदेश (Atom)