गुरुवार, 19 मार्च 2009

लघुकथा - गरीब तो बच जाएंगे...

मंदी की महामारी ने हर तरफ अपना जाल फैला लिया है। किसी कंपनी को कैंसर हो चुका है, तो किसी को एड्स। कर्मचारियों की छंटनी का खतरा हर तरफ मुंह बाये खड़ा है। जेट एयरवेज ने 800 कर्मचारियों को रुखसत क्या किया, लगा पूरे देश में भूचाल आ गया हो। न्यूज चैनल में भले ही ये खबर आम खबरों की तरह आकर चली गई हो, लेकिन फिल्म सिटी में टेलीविजन के बुद्धिजीवी पत्रकारों में बहस छिड़ी हुई थी। महंगी गाड़ियों की कतारों के बीच एक विदेशी गाड़ी के इर्द गिर्द दर्जन भर पत्रकार जमा थे। कार के बोनट पर विदेशी शराब की कई बोतलें, चिकन, चिप्स रखे हुए थे। जाम छलक रहा था, और टेलीविजन पत्रकारों के चेहरे से गंभीरता के रस टपक रहे थे। मुद्दा बड़ा था - इतनी खूंखार मंदी के बाद अब क्या होगा इस देश का।
विदर्भ में हजारों किसानों की आत्महत्या, बिहार- झारखंड में नक्सलियों के मुद्दे पर नाक मुंह बिचकाने वाले इन पत्रकारों को अचानक देश में आई इस मंदी का खतरा नजर आने लगा था। बहस पूरे शबाब पर थी

- “ इस देश को अब कोई नहीं बचा सकता। कहीं इस मंदी से उबरने की सूरत नहीं ” – अपने आप को बुजुर्ग की तरह दिखाने वाले एक कम उम्र के पत्रकार ने कहा
- “ ऐसा बिल्कुल नहीं है, इस मंदी का असर ज्यादा लोगों पर नहीं पड़ा है, देश के 70-80 फीसदी लोग तो इसके बारे में जानेंगे भी नहीं ” – एक चैनल के नये नवेले एंकर ने जवाब दिया, जिन्होंने दलबदलू की तरह तीन साल में चार चैनल बदल लिया है
- “ तो क्या हुआ, ऐसे लोग थोड़ी ने देश में राज करते हैं, ये तो भीड़ है। असल तो कारपोरेट जगत से जुड़े लोग हैं, जैसे आईटी, बैंकिंग, रियल इस्टेट.... मीडिया से जुडे लोग... जो उधार की जिंदगी जी रहे हैं ”... एक बुजुर्ग पत्रकार ने टोका (इस जनाब को मीडिया के लोग तो बुजुर्ग मानते ही हैं, लेकिन ये खुद को उससे भी ज्यादा वरिष्ठ मानते हैं)
- “ सही बात है अब हमारे ही घरवालों को ले लो, उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए कोई कर्ज तो लिया नहीं, पहले कमाए, पैसा जमा किया और फिर सामान खरीदा ” – कार के पीछे से किसी पत्रकार की आवाज आई
- “ और हमारी जिंदगी में तो कार, घर हर कुछ उधार पर है ”
- “ वैसे यार ये मंदी से कुछ नहीं होने वाला, वैसे ही इस देश में इतनी गरीबी है कि मंदी वहां तक पहुंच भी नहीं पाएगी ”
- “ यार मंदी से गरीबों का क्या मतलब, इस मंदी में गरीब तो जी जाएंगे, लेकिन अमीरों को कौन बचाएगा ” – व्हीस्की की तीसरी पैग लेते हुए एक पत्रकार ने कहा
- “ हां यार, हां यार ’
- “ सही कहा ”
- “ क्या बात है, गरीब तो बच जाएंगे, लेकिन हमलोगों को कौन बचाएगा ”

नशे की दुनिया में गोते लगा चुके सारे पत्रकार अब तक अपनी अपनी बात ऱखने में लगे थे। सब कोई बोल रहा था। सुन कोई किसी की नहीं रहा था। लेकिन अचानक आखिरी लाइन पर सब अटक गए। और सब एकमत हो गए। बहस खत्म हो चुकी थी। और सब एक दूसरे को चीयर्स कर रहे थे।

हरीश चंद्र बर्णवाल
ASSOCIATE EXECUTIVE PRODUCER, IBN 7

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