शनिवार, 28 मार्च 2009

किस मुंह से धोनी के पास जाओगे

कहते हैं टीम इंडिया में एक से बढ़कर एक हीरा है। कहते हैं इस समय की इंडियन क्रिकेट टीम देश की सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट टीम है। कहते हैं भारतीय क्रिकेट का बैटिंग लाइन अप इससे बढ़िया कभी नहीं रहा। बॉलिंग में भी ऐसी वेरायटी कभी नहीं रही। ये टीम दुनिया की किसी भी टीम का कहीं भी मुकाबला कर सकती है। इस टीम में क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में जीतते रहने का हुनर है। इसे सिर्फ जीतना आता है। हारना तो बस समझ लीजिए कि जब ये टीम चाहेगी तभी हारेगी।
पर ये क्या...??? नेपियर में तो पूरी टीम ही नप गई... क्या बैटिंग, क्या बॉलिंग और क्या फिल्डिंग! हर मोर्चे पर इतना लिजलिजापन... क्या हो गया टीम इंडिया को... वही सचिन, वही सहवाग, वही लक्ष्मण... द्रविड़... विस्फोटक युवराज भी हैं... मगर सबके सब तीन सौ पहुंचते पहुंचते ही निपट गए... ये भी न सोचा कि कीवियों ने पहाड़ सा रन खड़ा दिया है... इतना ही नहीं जरा बॉलिंग तो देखिए... जहीर, दिल्ली एक्सप्रेस ईशांत शर्मा, टर्बनेटर हरभजन सिंह और संकट मोचक बॉलर युवराज भी टीम में ही हैं... लेकिन सबके सब बेकार... क्या हो गया इस टीम को? कहीं किसी की बुरी नजर तो नहीं लग गई या फिर शनि ग्रह इन पर हावी हो गया है? क्या किसी ने जादू टोना कर दिया?
लेकिन जनाब जरा रुकिए। हकीकत से रूबरू होइये क्योंकि टीम इंडिया के ये सारे धुरंधर भले ही हीरे हों... लेकिन इन्हें परखने वाला जौहरी जो नहीं है टीम में। असल में ये हीरा तभी तक हैं जब इनके साथ धोनी नाम का कोहिनूर हीरा होता है। ये तभी चमकते हैं, जब इन पर धोनी की पॉलिश चढ़ती है। वर्ना ऐसा कैसे हो जाता कि जिस टीम ने पिछले 6 में से 5 मैच जीते हों (वो भी टेस्ट में)... उनके सामने कीवियों ने पहले ही दिन हिमाकत करते हुए 351 रन ठोक दिए और पूरी टीम बेसहारा नजर आती रही।

इसलिए क्रिकेट के दीवानों सुन लो। सचिन के प्रशंसकों अपने दिल को कठोर बना लो। युवराज के समर्थकों जरा होश में आओ। ये समझ लो कि ये सारे क्रिकेटर तभी काम आ सकते हैं... जब इनके दिमाग में धोनी का जादू चलता हो। लेकिन क्या क्रिकेट के मैदान के ये जांबाज धोनी के बिना एक मैच भी नहीं खेल सकते? क्या माही के विजय अभियान को ये एक पल में ही चकनाचूर कर देंगे। अगर ऐसा हुआ तो ये टीम किस मुंह से धोनी के पास जाएगी? लाचार कप्तान सहवाग धोनी से क्या कहेंगे कि जिस तैंतीस साल की अमरगाता को तुमने लिख छोड़ा था... उसे हमने इकतालीस साल के यादगार सफर (सीरीज जीतने का सपना) में तब्दील करने की बजाए धुमिल कर दिया है... इसलिए क्रिकेट के ऐ कर्णवीरों अब भी होश में आए... अब भी दो दिन बचे हैं... कम से जीत न मिले॥ मगर हारकर तो मत आना...
हरीश चंद्र बर्णवाल

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